भ्रष्टाचार पर निबंध |Corruption Essay in Hindi |Corruption Nibandh

Corruption Essay in Hindi |Corruption Nibandh

मनुष्य एक सामाजिक, सभ्य और बुद्धिमान प्राणी है। उसे अपने समाज में कई प्रकार के लिखितअलिखित नियमोंअनुशासनों और समझौतों का उचित पालन और निर्वाह करना होता है। उससे अपेक्षा होती है कि वह अपने आचरण-व्यवहार को नियंत्रित और संतुलित रखेजिससे किसी अन्य व्यक्ति को उसके व्यवहार अथवा कार्य से दुख न पहुंचेकिसी की भावनाओं को ठेस न लगे। इसके विपरीत कुछ भी करने से मनुष्य भ्रष्ट होने लगता है। और उसके आचरण और व्यवहार को सामान्य अथों में भ्रष्टाचार कहा जाता है।

जब व्यक्ति के भ्रष्ट आचरण और व्यवहार पर समाज अथवा सरकार का कोई नियंत्रण नहीं रहता, तब यह एक भयानक रोग की भाँति समाज और देश को खोखला बना डालता है। हमारा समाज भी इस बुराई के शिकंजे में बुरी तरह जकड़ा हुआ है और लोगों का नैतिक मूल्यों से मानो कोई संबंध ही नहीं रह गया है।

हमारे समाज में हर स्तर पर फैल रहे भ्रष्टाचार की व्यापकता में निरंतर वृद्धि हो रही है। भ्रष्टाचार के विभिन्न रूपरंग हैं और इसी प्रकार नाम भी अनेक हैं। उदाहरणस्वरूप रिश्वत लेनामिलावट करना, वस्तुएँ ऊंचे दामों पर बेचना, अधिक लाभ के लिए जमाखोरी करना अथवा कालाबाजारी करना और स्मग्लिंग करना आदि विभिन्न प्रकार के भ्रष्टाचारों के अंतर्गत आता है। आज विभिन्न सरकारी कार्यालयों, नगर-निगम या अन्य प्रकार के सरकारी निगमों आदि में किसी को कोई छोटा-सा एक फाइल को दूसरी मेज तक पहुँचाने जैसा काम भी पड़ जाए, तो बिना रिश्वत दिए यह संभव नहीं हो पाता। किसी पीड़ित को थाने में अपनी रिपोर्ट दर्ज करानी हो, कहीं से कोई फॉर्म लेना या जमा कराना हां, लाइसेंस प्राप्त करना हो अथवा कोई नक्शा आदि पास करवाना हो, तो बिना रिश्वत दिए अपना काम कराना संभव नहीं हो पाता।

किसी भी रूप में रिश्वत लेना या देना भ्रष्टाचार के अंतर्गत ही आता है। आज तो नौबत यह है कि भ्रष्टाचार और रिश्वत के अपराध में पकड़ा गया व्यक्ति रिश्वत ही देकर साफ बच निकलता है। इस प्रकार का भ्रष्टाचार रातदिन फल फूल रहा है। भ्रष्टाचार में वृद्धि होने से आज हमारी समाज व्यवस्था के सम्मुख गंभीर चुनौती उत्पन्न हो गई है।

भ्रष्टाचार के बढ़ने की एक बहुत बड़ी वजह हमारी शासन व्यवस्था की संकल्पविहीनता तो रही है ही, परंतु यदि हम इस समस्या का ध्यान से विश्लेषण करें तो इसका मूल कारण कुछ और ही प्रतीत होता है। वास्तव में, मनुष्य के मन में भौतिक सुखसाधनों को पाने की लालसा निरंतर बढ़ती ही जा रही है। इस लालसा में विस्तार होने के कारण मनुष्य में लोक-लाज तथा परलोक का भय कम हुआ है और वह स्वार्थी, अनैतिक और भौतिकवादी हो गया है। आज वह विभिन्न प्रकार के भौतिक और उपभोक्ता पदार्थों को एकत्रित करने की अंधी दौड़ में शामिल हो चुका है। इसका फल यह हुआ है कि उसका उदार मानवीय आचरण-व्यवहार एकदम पीछे छूट गया है। अब मनुष्य लालचपूर्ण विचारों से ग्रस्त है और वह रातदिन भ्रष्टाचार के नितनए तरीके खोज रहा है। खुद को पाक-साफ मानने वाले हम सभी आम जन भी प्राय: भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में सहायक बन जाते हैं।

हम स्वयं भी जब किसी काम के लिए किसी सरकारी कार्यालय में जाते हैं, तो खैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करना हमें कठिनसा लगने लगता है। किसी कार्य में हो रही अनावश्यक देरी का कारण जानने और उसका विरोध करने का साहस हम नहीं जुटा पाते। इसके बजाय कुछ लेदेकर, बल्कि किसी बात की परवाह किए बिना हम सिर्फ अपना काम निकालना चाहते हैं। आम लोगों का ऐसा आचरण भ्रष्टाचार को प्रश्रय और बढ़ावा ही देता है और ऐसे में यदि हम ही भ्रष्टाचार के विरुद्ध कुछ कहें अथवा उसे समाप्त करने की बातें करें, तो यह किसी विडंबना से कम नहीं है।

भ्रष्टाचार के निवारण के लिए सहज मानवीय चेतनाओं को जगाने, नैतिकता और मानवीय मूल्यों की रक्षा करने, आत्मसंयम अपनाकर अपनी भौतिक आवश्यकताओं को रखने तथा अपने साथ-साथ दूसरों का भी ध्यान रखने की भावना का विकास करने की आवश्यकता है। सहनशीलताधैर्य को अपनाना तथा भौतिक और उपभोक्ता वस्तुओं के प्रति उपेक्षा का भाव विकसित करना भी भ्रष्टाचार को रोकने में सहायक सिद्ध हो सकता है। अन्य उपायों के अंतर्गत सक्षम व दृढ़निश्चयी शासनप्रशासन का होना अति आवश्यक है।

शासनप्रशासन की व्यवस्था से जुड़े सभी व्यक्तियों का अपना दामन अनिवार्य रूप से पाक-साफ रखना चाहिए। आज के संदर्यों में अगली बार सत्ता मिले या न मिलेनौकरी रहे या जाएलेकिन प्रशासन और शासन व्यवस्था को पूरी तरह स्वच्छ व पारदर्शी बनाना ही है-इस प्रकार का संकल्प लेना अति आवश्यक हो गया है। इन उपायों से इतर भ्रष्टाचार पर नियंत्रण या उसके। उन्मूलन का कोई और संभव उपाय फिलहाल नजर नहीं आता।

भ्रष्टाचार से व्यक्ति और समाज दोनों की आत्मा मर जाती है। इससे शासन और प्रशासन की नींव कमजोर पड़ जाती है, जिससे व्यक्ति, समाज और देश की प्रगति की सभी आशाएँ व संभावनाएँ धूमिल पड़ने लगती है। अतयदि हम वास्तव में अपने देश, समाज और संपूर्ण मानवता की प्रगति और विकास चाहते हैं, तो इसके लिए हमें हर संभव उपाय करके सर्वप्रथम भ्रष्टाचार का उन्मूलन करना चाहिएकेवल तब ही हम चहुमुखी विकास और प्रगति के अपने स्वप्न को साकार कर सकेंगे

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