भ्रष्टाचार पर निबंध |Corruption Essay in Hindi |Corruption Nibandh

Corruption Essay in Hindi |Corruption Nibandh

अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए अपने पद का दुरुपयोग करना और अनुचित ढंग से धन कमाना ही भ्रष्टाचार है। हमारे देश में विशेषतया सरकारी विभागों में अधिकांश कर्मचारी और अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। चपरासी हो या उच्च अधिकारी सभी अपने पद का दुरुपयोग करके धन-सम्पत्ति बनाने में लगे हुए हैं। सरकारी विभागों में रिश्वत के बिना कोई भी कार्य कराना आम आदमी के लिए सम्भव नहीं रहा है। कानून बनाने वाले और कानून के रक्षक होने का दावा करने वाले भी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। आम जनता के विश्वास पर उसके प्रतिनिधि के रूप में राज-काज सम्भालने वाले आज के राजनेता भी बड़े-बड़े घोटालों में लिप्त पाए गए हैं। प्रष्टाचार के मकड़जाल में हमारे देश का प्रत्येक विभाग जकड़ा हुआ है और देश के विकास में बाधक बन रहा है ।

किसी भी राष्ट्र के विकास के लिए उसके नागरिकों का, राजकीय कर्मचारियों और अधिकारियों का निष्ठावान होना अपने कर्तव्य का पालन करना आवश्यक है। परन्तु हमारे देश में लोग अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए अपने कर्तव्यों को भूलते जा रहे हैं। आज किसी भी विभाग में नौकरी के लिए एक उम्मीदवार को हजारों रुपये रिश्वत के रूप में देने पड़ते हैं। रिश्वत देकर प्राप्त किए गए पद का स्पष्टतया दुरुपयोग ही किया जाता है। वास्तव में हमारे देश में प्रष्टाचार एक लाइलाज रोग के रूप में फैला हुआ है और समस्त सरकारी विभागों में यह आम हो गया है। रिश्वत को आज सुविधाशुल्क का नाम दे दिया गया है और आम आदमी भी इस भ्रष्टाचार-संस्कृति का हिस्सा बनता जा रहा है। यद्यपि रिश्वत लेना और देना कानून की दृष्टि में अपराध है, परन्तु सरकारी कर्मचारीअधिकारी निर्भय होकर रिश्वत माँग रहे हैं और आम आदमी सुविधाशुल्क को अपने लिए सुविधा मानने लगा है । कोई ईमानदार व्यक्ति भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने का प्रयास करे भी तो उसकी सुनवाई कैसे हो सकती है, जबकि सुनने वाले स्वयं भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।

हमारे देश में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि उन्हें उखाड़कर फेंकना सरल नहीं रहा है। प्रष्टाचार का दुप्रभाव अवश्य पूरे देश में दिखाई दे रहा है। छोटे बड़े कार्य अथवा नौकरी के लिए रिश्वत देना-लेना तो आम बात हो गयी है। आम जनता की सुविधा के लिए घोषित की गयी विभिन्न परियोजनाओं का लाभ भी भ्रष्टाचार के कारण आम आदमी को नहीं मिल पा रहा है । सरकारी खजाने से परियोजनाओं के लिए जो धन भेजा जाता है, उसका आधे से अधिक हिस्सा सम्बंधित अधिकारियों की जेबों में जाता है। प्रायः परियोजनाओं का आंशिक लाभ ही आम जनता को मिल पाता है। प्रष्टाचार के कारण अनेक परियोजनाएँ तो अधूरी रह जाती हैं और सरकारी खजाने का करोड़ों रुपया व्यर्थ चला जाता है।

वास्तव में भ्रष्टाचार का सर्वाधिक दुष्प्रभाव आम जनता पर पड़ रहा है। सरकारी खजाने की वास्तविक अधिकारी आम जनता सदैव उससे वंचित रहती है। विभिन्न परियोजनाओं में खर्च किया जाने वाला जनता का धन बड़ेबड़े अधिकारियों और मंत्रियों को सुखसुविधाएं प्रदान करता है। विभिन्न विभागों के बड़ेबड़े अधिकारी और राज नेता करोड़ों के घोटाले में सम्मिलित रहे हैं। जनता के रक्षक बनने का दावा करने वाले बड़ेबड़े पुलिस अधिकारी और कानून के रखवाले न्यायाधीश भी आज भ्रष्टाचार से अछूते नहीं हैं । कभी कभार किसी घोटाले अथवा रिश्वत कांड का भंडाफोड़ होता है, तो उसके लिए जाँच समिति का गठन कर दिया जाता है। जाँच की रिपोर्ट आने में वर्षों लग जाते हैं। आम जनता न्याय की प्रतीक्षा करती रहती है। और भ्रष्ट अधिकारी अथवा मंत्री पूर्ववत् सुखसुविधाएँ भोगते रहते हैं। भ्रष्टाचार के रहते आज जाँच रिपोर्ट को भी संदेह की दृष्टि से देखा जाता है ।

वास्तव में हमारे देश की जो प्रगति होनी चाहिए थी, आम जनता को जो सुविधाएं मिलनी चाहिए थीं, प्रष्टाचार के कारण न तो वह प्रगति हो सकी है, न ही जनता को उसका हक मिल पा रहा है। भ्रष्टाचार के रोग को समाप्त करने के लिए हमारे देश को योग्य और ईमानदार नेता की आवश्यकता है।

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