पर्यावरण पर निबंध |Environment Essay in Hindi |Environment Nibandh

Environment Essay in Hindi |Environment Nibandh

इस पृथ्वी पर प्राकृतिक अवस्था में विभिन्न जीव-जन्तुओं वनस्पतियों, मानव-जाति के आसपास विद्यमान समस्त रचना-संसार को पर्यावरण कहा जाता है। प्रकृति का रचना-संसार अपने मूल रूप में ही शुद्धस्वच्छ एवं स्वस्थ रहता है। विभिन्न जीवजन्तुपेड़-पौधे, पर्वतमालाएँझरने, नदियाँ इत्यादि प्राकृतिक अवस्था में फलतेफूलते हैं और इन पर किसी भी प्रकार के बाहरी प्रहार इनके संतुलन के लिए खतरे का कार्य करते हैं। पर्यावरण का संतुलन बने रहना प्रकृति के समस्त रचना-संसार के लिए हितकर है। मानवजाति के हित के लिए भी पर्यावरण संतुलन अनिवार्य है। पर्यावरण का संतुलन बिगड़ने से समस्त रचनासंसार के साथ मानव-जाति को भी हानि ही होती है। अतः पर्यावरण सुरक्षा बहुत आवश्यक है।

मनुष्य ने व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए बारम्बार पर्यावरण से खिलवाड़ किया है। उसने वनों को काट-काटकर सूखे मैदान बना दिए। यातायात के मार्ग बनाने के लिए मनुष्य ने पर्वतों को भी उजाड़ दिया। आज अधिकांश कृषि योग्य भूमि पर कंकरीट के जंगल खड़े हुए हैं। फलतः जीव-जन्तुओंपक्षियों की अनेक प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी , अनेक विलुप्त होने के कगार पर हैं । वनों, पर्वतों से उपलब्ध होने वाली अधिकांश उपयोगी वनस्पति, औषधियाँ समाप्त हो गयी हैं। पर्यावरण का संतुलन बिगड़ने से ऋतुओं पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। अब वषा अपने पूर्ण यौवन से नहीं आती। वनों, पेड़-पौधों के अभाव में मिट्टी का कटाव भी बढ़ गया है। नदियों की गहराई कम हो गयी है। कलकारखानों से निकलने वाली विशैली गैस के कारण वायु दूषित हो गयी है । मिल-कारखानों से निकलने वाले दूषित जल के अतिरिक्त मनुष्य ने कूड़ाकचरा बहाकर नदियों के जल को भी विद्युला बना दिया है। आज सम्पूर्ण वातावरण दूषित हो गया

है। इसका मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। और अनेक रोग जन्म ले रहे हैं। पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करके मनुष्य ने स्वयं मानव-जाति के लिए अनेक कठिनाइयाँ उत्पन्न कर दी हैं। आज पृथ्वी पर साँस लेना मनुष्य के लिए दूभर हो गया है। प्राचीन काल में वनों पेड़-पौधों के सरंक्षण पर बल दिया जाता था। मनुष्य अपनी आवश्यकता के लिए वृक्षों को काटता अवश्य था, परन्तु वह नये वृक्ष भी उगाता था। वनोंवनस्पतियों की उपस्थिति में वातावरण भी शुद्ध रहता था। विभिन्न जीव-जन्तुपशु-पक्षी प्रकृति की गोद में स्वच्छंद विचरण किया करते थे। आज प्रकृति का वह सौंदर्य मात्र कल्पनाओं में रह गया है। वास्तव में नगरोंमहानगरों के विकास ने पर्यावरण को बहुत हानि पहुंचाई है। वातावरण में फैली विक्षैली गैस पर्यावरण पर निरन्तर प्रहार कर रही है। असंतुलित पर्यावरण के दुष्परिणाम सम्पूर्ण मानव-जाति को भोगने पड़ रहे हैं । यही कारण है कि आज विश्व के समस्त देश पर्यावरण-सुरक्षा पर विचार करने लगे हैं।

मनुष्य पर्यावरण को जो हानि पहुंचा चुका है, उसकी भरपाई आसान नहीं है। परन्तु आज पर्यावरण-सुरक्षा के प्रति मनुष्य का सजग बने रहना बहुत आवश्यक है। अनेक जीव-जन्तुओं वनस्पतियों के साथ मानव-जाति के निरन्तर हो रहे विनाश को रोकने के लिए आज पर्यावरण-सुरक्षा अनिवार्य हो गयी है। इसके लिए हमें सामूहिक रूप से प्रयास करने की आवश्यकता

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