Environment Essay in Hindi |Environment Nibandh
पर्यावरण प्रदूषण के कारण ही पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। इस ताप का प्रभाव ध्वनि की गति पर भी पड़ता है। तापमान में एक डिग्री सेल्सियस ताप बढ़ने पर ध्वनि की गति लगभग साठ सेंटीमीटर प्रति सेकेण्ड बढ़ जाती है। आज हर ध्वनि की गति तीव्र है और श्रवण शक्ति का ह्रास हो रहा है। यही कारण है कि आज बहुत दूर से घोड़ों के टापों की आवाज जमीन पर कान लगाकर नहीं सुनी जा सकती। जबकि प्राचीन काल में राजाओं की सेना इस तकनीक का प्रयोग करती थी। बढ़ते उद्योगों, महानगरों के विस्तार तथा सड़कों पर बढ़ते वाहनों के बोझ ने हमारे समक्ष कई तरह की समस्या खड़ी कर दी हैं। इनमें सबसे भयंकर समस्या है प्रदूषण। इससे हमारा पर्यावरण संतुलन तो बिगड़ ही रहा है साथ ही यह प्रकृति प्रदत्त वायु व जल को भी दूषित कर रहा है। पर्यावरण में प्रदूषण कई प्रकार के हैं। इनमें मुख्य रूप से ध्वनि प्रदूषणवायु प्रदूषण और जल प्रदूषण शामिल हैं। इनसे हमारा सामाजिक जीवन प्रभावित होने लगा है। तरह-तरह के रोग उत्पन्न होने लगे हैं।
औद्योगिक संस्थाओं को -करकट रासायनिक द्रव्य व इनसे निकलने वाला अवजल नाली-नालों से होते हुए नदियों में गिर रहे हैं। इसके अतिरिक्त अंत्येष्टि के अवशेष तथा छोटे बच्चों के शवों को नदी में बहाने की प्रथा है। इनके परिणामस्वरूप नदी का पानी दूषित हो जाता है। हालांकि नदी के इस जल को वैज्ञानिक तरीके से शोधित कर पेय जल बनाया जाता है। लेकिन इस कथित शुद्ध जल के उपयोग से कई प्रकार के विकार उत्पन्न हो रहे हैं। इनमें खाद्य विषाक्तता तथा चर्म रोग प्रमुख है। प्रदूषित जल मानव जीवन को ही नहीं कई अन्य क्षेत्रों को भी प्रभावित करता है। इससे कृषि क्षेत्र भी अछूता नहीं है। प्रदूषित जल से खेतों सिंचाई करने के कारण उनमें उत्पन्न होने वाले खाद्य पदार्थों की शुद्धता व उसके अन्य पक्षों पर भी उसका दुष्प्रभाव पड़ता है।
शुद्ध वायु जीवित रहने के साथ-साथ हमारे जीवन के लिए आवश्यक है। शुद्ध वायु का स्रोत वनहरेभरे बाग व लहलहाते पेड़पौधे हैं। क्योंकि यह जहां प्रदूषण के भक्षक हैं वहीं यह हमें आक्सीजन प्रदान करते हैं। बढ़ती जनसंख्या के कारण आवास की समस्या उत्पन्न होने लग रही है। मानव ने अपनी आवासीय पूर्ति के लिए वन क्षेत्रों और वृक्षों का भारी मात्रा में दोहन किया। इसके अलावा हरित पट्टियों पर कंकरीट के जाल रूपी सड़कें बिछा दी हैंइस कारण हमें शुद्ध वायु नहीं मिल पा रही। इसके अतिरिक्त कारखानों से निकलने वाली विषैली गैसेंधुंआ,-कचरों से उत्पन्न गैस वायु को प्रदूषित कर रही है। रही सही कसर पेट्रोलियम पदार्थ से चलने वाले वाहनों ने पूरी कर दी है।
स्कूटर, मोटरसाइकिलकारबसट्रक आदि वाहन दिन रात सड़कों पर दौड़ रहे हैं। इनसे जो धुंआ निकलता है उसमें कार्बनडाय आक्साइड, सल्फ्यूरिक एसिड और शीशे के तत्व शामिल होते हैं। जो हमारे वायुमंडल में घुलकर उसे प्रदूषित करते हैं। दिल्ली जैसे महानगर में वायु को प्रदूषित करने में वाहनों की अहम् भूमिका है। वायु को प्रदूषित करने में इनका हिस्सा साठ प्रतिशत तथा शेष कारखानों व अन्य स्रोतों के जरिये होता है।
वायु प्रदूषण से श्वास सम्बन्धी रोग उत्पन्न होते हैं। इसके अलावा यह हमारे नेत्रों व त्वचा को भी प्रभावित करती है।
हमारे वातावरण में मनुष्य की ध्वनि के अतिरिक्त प्रकृति और प्राकृतिक वातावरण से सुनाई देने वाली भी कुछ ध्वनियां हैं। पक्षियों के चहचहाने, पत्तों का टकरानेबादलों और समुद्र की हल्की गर्जना आदि से भी ध्वनि उत्पन्न होती है। इन ध्वनियों को प्रकृति का संगीत मानकर उनका आनन्द लिया जाता है। लेकिन यही ध्वनियां जब तेज हो उठती हैं तो कानों को चुभने लगती हैं। तेज ध्वनि से कानों के पर्दे फट जाने और व्यक्ति के बहरा हो जाने का भय होता है। इस भयप्रद ध्वनियों के प्रभाव को वास्तव में ध्वनि प्रदूषण कहा जाता है।
प्रात: से ही हम ध्वनि प्रदूषण का शिकार होने लगते हैं। इस समय मन्दिरोंमस्जिदों, गुरुद्वारों में कीर्तन मण्डलियों द्वारा लाउडस्पीकर चलाकर भजन गाये जाते हैं। यह भी ध्वनि प्रदूषण का एक बहुत बड़ा हानिप्रद कारण है। इम पर अंकुश लगाने में हमारा धर्म आड़े आ जाता है। यही कारण है कि इस पर कानूनी अंकुश लगाने में सफलता नहीं मिल पा रही है। इसके अतिरिक्त मोटरोंकारोंट्रकों, बसोंस्कूटरों आदि के तेज आवाज वाले हार्नतेज गति व आवाज से दौड़ती , कल- कारखानों के बजते भोंपू व मशीनों की आवाज भी ध्वनि प्रदूषण फैलाती है। संगीत की कोकिल ध्वनि चित्त को जहां शांति व खुशी प्रदान करती है वहीं दूसरी ओर वाहनों का शोर हमें कान की व्याधि का शिकार बना रहा है। ध्वनि व शोर में कोई अधिक अंतर नहीं है। शोर वह ध्वनि है जिसे हम नहीं चाहते। अधिक तीव्रता एवं प्रबलता की ध्वनि ही शोर कहलाती है।
बड़े शहरों के खुले वातावरण में तीस डेसीबल का शोर हर समय रहता है। कभीकभी यह पचास से डेढ़ सौ डेसीबल तक बढ़ जाता है। उल्लेखनीय है कि किसी सोये हुए व्यक्ति की निद्रा चालीस डेसीबल के शोर से खुल जाती है। पहले प्रात: चिड़ियों की चहचहाट से नींद खुलती थी लेकिन अब मोटर वाहनों की शोरगुल से नींद खुलती है। अकेले दिल्ली में सड़कों पर दौड़ते वाहनों एवं कर्कश कोलाहल से करीब सवा करोड़ की आबादी में से अधिकतर लोग शोर जनित बहरेपन के शिकार हैं। ऐसे लोगों को फ्रस्फुसाहट सुनाई नहीं देती। पचास डेसीबल का शोर हमारे श्रवण शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। दीवाली पर चलाये जाने वाले पटाखों का शोर दौ सौ डेसीबल से भी अधिक होता है।
ध्वनि प्रदूषण कानों की श्रवण शक्ति के लिए तो हानिकारक है ही, साथ ही यह तन मन की शान्ति को भी प्रभावित करता है। ध्वनि प्रदूषण के कारण मानव चिड़चिड़ा और असहिष्णु हो जाता है। इसके अलावा अन्य कई विकार पैदा होने लगते हैं। हमें प्रदूषण से बचने के लिए हरित क्षेत्र विकसित करना होगा। इसके अतिरिक्त आवासीय क्षेत्रों में चल रही औद्योगिक इकाइयों को वहां से स्थानांतरित कर इन इकाइयों से निकलने वाले कचरे को जलाकर नष्ट करने जैसे कुछ उपाय अपनाकर प्रदूषण पर कुछ हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है।
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