योग पर निबंध | Yoga Essay in Hindi |Yoga Nibandh

Yoga Essay in Hindi |Yoga Nibandh

योगसिद्धि एवं शरीर शुद्धि के लिए योगासन जरूरी है। यही कारण है कि आज विज्ञान के इस दौर में योग शिक्षा प्राप्त करने के लोग इच्छुक हैं। सरल शब्दों में कहें तो सुखपूर्वक एवं निश्चल बैठने की मुद्रा ही योग आसन कहलाती है। योगासन व व्यायाम एक नहीं है लेकिन दोनों के फायदे एक समान हैं। व्यायाम से आसन हर दृष्टिकोण से फायदेमंद है। व्यायाम में एक ही कसरत को कुछ समय तक लगातार किया जाता है। ऐसा करने से शरीर जहां थक जाता है वहीं पसीना भी आने लगता है। योगासन में ऐसा नहीं होता। व्यायाम करते समय एक अंग विशेष की कसरत होती है जबकि आसन में शरीर के सभी अंगों पर उसका प्रभाव पड़ता है। व्यायाम करने के बाद जहां शरीर में थकावट होने लगती है वहीं थोड़ी देर तक किसी काम को करने की इच्छा भी नहीं करती। योगासन से शरीर में थकावट भी अनुभव नहीं होती और शरीर हल्का भी लगने लगता है। योगासन करते समय शरीर के सभी अंग प्रभावित होते हैं।

किसी भी तरह का व्यायाम करने के लिए जहां समय अधिक चाहिए होता है वहीं योगासन करने के लिए ज्यादा समय की आवश्यकता नहीं होती। माना यदि हमें आठ आसन रोजाना करने हैं तब भी यदि दो-दो मिनट एक आसन को दिया जाए तब भी सोलह मिनट में आपने सभी आसन कर लिए। इतना कम समय हर व्यक्ति बड़ी आसानी से निकाल सकता है। इसके लिए किसी बड़े मैदान व पार्क की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है। सबसे फायदेमंद बात यह है कि व्यायाम में किसी रोग का उपचार नहीं हो सकता जबकि योगासन से कई रोगों का उपचार भी संभव है। व्यायाम कमजोर और रोगी व्यक्ति नहीं कर सकते हैं। कई रोग तो ऐसे हैं जिनमें दवा से ज्यादा व जल्द असर योगासन का होता है। इसलिए कहा गया है-

आसमें विजित नल जितें तेन जग यम।
अने न विधिनायुक्त: प्राणायाम सदा कुरु।।

अर्थात – जिसने आसन को जीत लिया है उसने तीनों लोकों को जीत लिया। इसी प्रकार विधिविधान से प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए

योग संस्कृत के युज धातु से बना है। इसका अर्थ होता है – मिलाना, जोड़ना संयुक्त होना, बांधना, अनुभव को पाना तथा तल्लीन होना। यह भी कहा जा सकता है कि दो वस्तुओं के परस्पर मिलन तथा जोड़ का नाम ही योग है।

महर्षि पतंजलि के अनुसार – “योगश्चित्तवृत्ति निरोध” अर्थात मन की वृत्तियों-रूप रसगंधस्पर्श और शब्द के लोभ में दौड़ने को रोकना ही योग है। यदि दूसरे शब्दों में कहा जाए तो कहा जा सकता है कि चित्त की चंचलता का दमन करना ही योग है।

श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने योग का अर्थ समझाते हुए कहा है कि

1. ‘समत्वं योग उच्यते’ अर्थात् समता या समानता को ही योग कहते हैं। (जहां साधक और साध्य दोनों का एक ही शब्द व्यवहार या प्रयोग हुआ हो।)

2′ योग: कर्मसु कौशलम्’ अर्थात् प्रत्येक कार्य को कुशलता निपुणता) से संपन्न कराना ही योग है। अत: अपनी अंतरात्मा के साथ एकाकार होने को योग कहते हैं।

आसन करने के लिए यदि आप दृढ़ निश्चयी हैं तो कहीं भी किये जा सकते हैं। व्यायाम एक तो हर स्थान पर नहीं किया जा सकता दूसरा इसे किसी भी समय नहीं किया जा सकता है। योग कभी भी और कहीं भी किये जा सकते हैं। मानव शरीर के सभी अंगों व भीतरी भागों पर व्यायाम का असर नहीं पड़ता जबकि योग आसन करने से शरीर के सभी भागों सहित आंतरिक हिस्से पर भी प्रभाव पड़ता है।

आज का आधुनिक विज्ञान मानव तथा प्रकृति के मध्य और अधिक समन्वय स्थापित करने के लिए निरंतर नयी-नयी खोज कर रहा है। इनमें से सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय जड़ और चैतन्य के मध्य समन्वय स्थापित करना है। यह ज्ञान योग शास्त्रों में निहित है। योगासन वह विद्या है जिससे मानव अपना शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक विकास कर सकता है। कहा भी गया है कि जिसने आसनों की सिद्धी प्राप्त कर ली समझो उसने तीन लोकों पर विजय प्राप्त कर ली।

इंद्रियों पर विजय प्राप्त हो जाती है। इस प्रकार शरीर के समस्त विकार दूर हो जाते हैं। इसलिए यह कहने में कोई संदेह नहीं कि आसनों के द्वारा शरीर के रोगों को दूर किया जा सकता है और साथ-साथ स्वस्थ मस्तिष्क का विकास भी होता है।

योग आज एक थेरेपी के रूप में भी उपयोगी सिद्ध हो चुका है। हर एक रोग के लिए विशेष आसन है। रोग विशेष के उपचार के लिए अलग से आसन हैं। कई ऐसे रोग जिनके उपचार से डाक्टर जवाब दे देता है तो ऐसे रोग का उपचार काफी हद तक आसन से किया जा सकता है।

आसन करने के लिए जरूरी है कि आप किसी दक्ष व्यक्ति की देखरेख में आसन करेंकिसी भी रोग की दवा लेने पर उससे रोग दब तो जाता है लेकिन उसके प्रभाव से कई अन्य बीमारियां उत्पन्न हो जाती हैं।

हमारे शरीर में इतनी शक्ति है कि शरीर के विकारों को स्वयंमेव बाहर कर पुन: स्वस्थ हो सकता है।

उधर शरीर को स्थिर रखने तथा उसका बल बढ़ाने वाली क्रिया व्यायाम कहलाती है। स्वस्थ, सक्रिय तथा मानसिक और शारीरिक शक्ति बनाए रखने के लिए व्यायाम आवश्यक है। व्यायाम का उद्देश्य शरीर को उत्तम अवस्था में रखने से है। इससे जहां पाचन शक्ति ठीक रहती है वहीं कार्य करने के लिए उत्साह बना रहता है। व्यायाम से मनुष्य संयमी बना रहता है। व्यायाम से आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास उत्पन होते हैं। वे गुण मनुष्य के जीवन की सफलता के रहस्य हैं। व्यक्ति शक्तिशाली होने के साथ-साथ साहसी बनता है। उसमें संकट का सामना करने की शक्ति बढ़ती है। हमें व्यायाम तभी तक करना चाहिए जब तक हम थकावट महूसस न करने लगें। आयु के हिसाब से व्यायाम हल्के तथा भारी किये जा सकते हैं। प्रात: काल की सैर करीब-करीब सभी खेल व्यायाम की श्रेणी में आते हैं। खेलों के माध्यम से जहां हमारा मनोरंजन होता है वह प्रतियोगिता की भावना भी बढ़ती है।

व्यायाम का अनुशासन से सीधा संबंध है। हमें शरीर को स्वस्थ बनाये रखने के लिए व्यायामकी आवश्यकता होती है। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि शरीर को विस्तार देने की क्रियाएं व्यायाम हैं।

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