Autobiography of a Bus Essay in Hindi |Autobiography of a Bus Nibandh
मै डी.टी.सी. की एक बस हु । मेरी देह (बॉडी) का निर्माण टाटानगर, जमशेदपुर में हुआ। मेरा शरीर लोहे, लकड़ी, रबड़प्लास्टिक और कोच से बना हुआ है। मेरा इंजन’ अशोक लेलैंड‘ नामक कारखाने में, जो फरीदाबाद (हरियाणा) में है, बना है। सड़क पर भेजने से पहले मुझे डी.टी. सी. के शादीपुर डिपो में भेजा गया। यहाँ मैकेनिकों ने मेरे एक-एक कलपुरजे को ठोक-बजाकर देखा-परखा। कभी वे किसी पुरजे को पेंच से खोलतेकभी कसतेकभी फिर ढीला करते, कभी हथौड़ी से ठोकते। उस समय मुझे बहुत कष्ट का अनुभव हुआ। मेरा अंग-अंग दर्द करने लगा।
मेरा उस समय का सुख अवर्णनीय है जब उन सबने एक स्वर से कहा”बस बहुत बढ़िया बनी है, इंजन भी बहुत अच्छा है।” अब एक मैकेनिक मेरा भोंपू बजाने लगा और बाकी मैकेनिक मिलकर कोई फिल्मी गीत। गाने लगे। गीत का अर्थ तो समझ में नहीं आयापरंतु उनका स्वर मधुर था और उनकी मुझे मस्ती देखते ही बनती थी।
इतने में किसी अधिकारों को आते देखकर वे चुप हो गए। अधिकारी के हाथ में एक रजिस्टर था। उसने मेरी नजर लिखा (जो ट्रैफिक के दफ्तर में मुझे मिला था)। उसके बाद उसने ड्राइवर और कंडक्टर को पुकारा तथा मेरे मस्तक पर केंद्रीय सचिवालय’ की नेमका प्लेट लगाने आदेश दिया। उस समय मुझे इतना हर्ष हुआ कि क्या
राजधानी नई दिल्ली और सारे देश के प्रशासन का प्रमुख कई। देशों में देश भारत, उसको केंद्रीय सचिवालय। में अपने भाग्य पर इतराने लगी। चालक (ड्राइवर) अपनी सीट पर बैठा। कंडक्टर ने घंटी बजाई और मुझे शादोपुर डिपो के अहाते से बाहर लाकर अन्य बसों की पंक्ति में खड़ा किया गया। मेरे नए शरीर और चमचमाते रूप को देखकर दूसरी बसें ईष्य से आहें भरने लगीं। उनको आह का धु उठा और आकाश की ओर चला।
मैंने मन-ही-मन में कहा’जलती हैं तो जलें’ केंद्रीय सचिवालय को नेमप्लेट देखकर बहुत से स्त्री-पुरुष मेरो और लपके। मैंने अपनी सोट रूपी गोद में सबको आराम से बिठा लिया। कंडक्टर ने होंठों में सोटो दबाई ही थी। कि बाहर खड़े लोग चिल्लाने लगे”अरेऔरे शहरो। अभी तो बहुत जगह खाली है।”देखते देखते सीटें गई।
सारी भर अब लोग बीच के खाली स्थान पर खड़े होने लगे। खड़े लोगों को भी तीन-तीन कतारें लग गई। जब तिल धरने का भी स्थान न रहा तो कंडक्टर ने गुस्से में जोर से सीटी बजाई-चालक ने स्टियरिंग पर हाथ रखा और मैं चल पड़ी। यद्यपि अभी भी बाहर खड़े बहुत से लोग चिल्ला रहे थे।
इधर जहाँ मेरे मन में अदभुत हर्ष था कि पहली बार सड़कों पर दूसरी बसों से तेज भाग रही है, वहाँ खड़े हुए लोग इतने अधिक थे कि मेरी पीठ भी दर्द करने लगी थी। परंत मुझमें अपना दु:ख वर्णन करने की शक्ति न थी, अतमैं मन मारकर रह गई।
थोड़ी-थोड़ी दूरी पर चालक ब्रेक लगा देता था और मुझे बरबस रुक जाना पड़ता था, हालाँकि मैं जल्दी-से-जल्दी केंद्रीय सचिवालय पहुंचने को उत्सुक थी बल्कि लालायित थी। हर एक स्टॉप पर कुछ लोग चढ़तेकुछ उतरतेकुछ चढ़ने से रह जाते और मुझे कोसते थे। एक नवविवाहित जोड़ा जब आकर बैठा तो मेरे हर्ष की सीमा न रही।
परंतु मुझे तब बहुत दुःख हुआ जब वे पति-पत्नी मूंगफली खाकर वहीं छिलके फेंकने लगे और मेरे बदन को मैला करने लगे मुझे उनपर क्रोध तो बहुत आयापरंतु मैं उन्हें उतर जाने को नहीं कह सको, इसका खेद है। मैं कनॉट प्लेस पहुंची तो सुपर बाजार के पास बहुत -सी सवारियां उतर गई और मैंने अपनी पीठ सीधी की । तब मैं बड़े वेग से केंद्रीय सचिवालय को और बढ़ी । वहाँ के भव्य भवन को देखकर मैं मुग्ध हो गई।
मैं अपने सौभाग्य पर भी इतराई। परंतु यह तो पिछले साल की बात है। एक साल में ही मेरी देह का हुलिया बिगड़ गया है। उचित से अधिक सवारियाँ चढ़ जाती हैं, चाहे मैं कितना ही चीखती चिल्लाती रहें, ‘मेरा दर्द न जाने कोय।’
प्लिज नोट: आशा करते हैं आप को बस कि आत्मकथा पर निबंध (Autobiography of a Bus Essay in Hindi) अच्छा लगा होगा।
अगर आपके पास भी Autobiography of a Bus Nibandh पे इसी प्रकार का कोई अच्छा सा निबंध है तो कमेंट बॉक्स मैं जरूर डाले। हम हमारी वेबसाइट के जरिये आपने दिए हुए निबंध को और लोगों तक पोहचने की कोशिश करेंगे।
साथ ही आपको अगर आपको यह बस कि आत्मकथा पर हिन्दी निबंध पसंद आया हो तो Whatsapp और facebook के जरिये अपने दोस्तों के साथ शेअर जरूर करे।