Importance of water Essay in Hindi |Importance of water Nibandh
जल को जीवन माना जाता है। जल के अभाव में जीव-समुदाय जीवित नहीं रह पाएगा। जल का उपयोग हम पीने, नहाने, सिंचाई करने तथा साफ़-सफ़ाई में करते हैं। इन कार्यों के लिए हमें स्वच्छ जल की आवश्यकता होती है। लेकिन इन दिनों हमारे उपयोग का जल प्रदूषित हो गया है। जल में अनेक प्रकार के गंदे तत्व घुलमिल गए हैं। नालों का गंदगी, प्लास्टिक, सड़ेगले पदार्थकीटाणुनाशक आदि मिलने से जल की गुणवत्ता में बहुत कमी आ गई है। गंदे जल में हानिकारक कीटाणु होते हैं जो हमारे स्वास्थ्य को क्षति पहुंचाते हैं। अत: हमें जल को प्रदूषित नहीं करना चाहिए जल के भंडारों में ऐसा कोई पदार्थ नहीं छोड़ना चाहिए जिससे यह गंदा होता हो। नदियों की सफ़ाई पर पूरा ध्यान देना चाहिए। जलप्रदूषण के प्रति सामाजिक जागरूकता फैलानी चाहिए। जल को अमृत कहा गया है इसलिए इसकी स्वच्छता को बनाए रखना हमारा कर्तव्य है।
पेयजल संकट Essay on Water in Hindi
विश्व की कुल आबादी के अट्ठारह प्रतिशत हिस्से को पेयजल उपलब्ध नहीं है। विकासशील देशों में प्रतिवर्ष बाइस लाख लोग शुद्ध पेयजल न मिल पाने अथवा समुचित सफाई न होने के कारण काल के ग्रास बन जाते हैं। विकासशील देशों की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा प्रदूषित जल के सेवन से फैलने वाले रोगों से ग्रसित है। समुचित सफाई व्यवस्था एवं स्वच्छ पेयजल व्यवस्था कराकर ऐसी मौतों को बहुत हद तक रोका जा सकता है। विकासशील देशों में स्वच्छ जल का आधा भाग विभिन्न कारणों से बर्बाद हो जाता है। इन देशों में पानी भर कर लाने की जिम्मेदारी अधिकतर महिलाओं की होती है।
जिन्हें औसतन छ: किलोमीटर तक चलना होता है। विश्वभर में सत्तर प्रतिशत कृषि के लिए ताजा पानी का इस्तेमाल किया जाता है। सिंचाई व्यवस्था में व्याप्त खामियों के कारण साठ प्रतिशत पानी भाप बनकर उड़ जाता है। या नदियों या जलाशयों में वापस चला जाता है। त्रुटिपूर्ण सिंचाई व्यवस्था से जल की बर्बादी तो होती ही है इससे पर्यावरणीय एवं स्वास्थ्य संबंधी खतरे भी उत्पन्न होते हैं। अवांछित पानी भरने के कारण उत्पादन योग्य कृषि भूमि की भी हानि होती है। यह पानी मच्छरों की उत्पति का कारण बनता है जिससे मलेरिया के रोग उत्पन्न होते हैं।
ऐसी समस्या खासकर दक्षिण एशियाई देशों में बढ़ती जा रही है। विश्व की सतह का कहने को सत्तर प्रतिशत भाग पानी से भरा पड़ा है। लेकिन इसका 2.5 प्रतिशत भाग ही पीने योग्य है। शेष पानी खारा है। इस 2.5 प्रतिशत स्वच्छ जल का 70 प्रतिशत भाग बफले स्थानों पर जमा हुआ है। जबकि शेष भूमि में नमी के रूप में तथा गहरे जलाशयों में है। जिसका प्रयोग कर पाना इतना आसान कार्य नहीं है। इस प्रकार मात्र एक प्रतिशत से भी कम पानी मनुष्य के इस्तेमाल के लिए उपलब्ध है। पेयजल की कमी से कई क्षेत्रों में अब तनाव उत्पन्न होने लगा है। यह स्थिति खासकर उत्तर अफ्रीका और पश्चिम एशिया में विकराल रूप धारण करती जा रही है।
एक अनुमान के अनुसार अगले दो दशकों में विकासशील देशों की बढ़ती आबादी के लिए खाद्यान्न उत्पादन के लिए 17 प्रतिशत अतिरिक्त पानी की आवश्यकता होगी। पेयजल से जूझ रहे 30 प्रतिशत देशों को इस शताब्दी में पानी के जबरदस्त संकट का सामना करना पड़ सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार वर्ष 2025 तक संसार की दो तिहाई आबादी उन देशों में रहने के लिए मजबूर होगी जहां पानी की कमी या बहुत अधिक कमी का सामना करना पड़ेगा।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जारी विश्व की जल विकास रिपोर्ट में हमारे देश भारत को सबसे प्रदूषित पेयजल की आपूर्ति वाला देश कहा गया है। पानी की गुणवत्ता के आधार पर भारत का विश्व में बारहवां स्थान है। सबसे दुखद यह है सरकार द्वारा इस दिशा में वांछित प्रयासों एवं इच्छा शक्ति का अभाव दृष्टिगोचर होता है। एशिया में बहने वाली नदियां घरेलू कचरे एवं औद्योगिक कचरे के कारण सबसे अधिक प्रदूषित हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट में कहा गया है कि इन नदियों के पानी में पाये जाने वाले सीसे की मात्रा विश्व के अन्य औद्योगिक देशों की नदियों में पाये जाने वाले सीसे की मात्रा से बीस गुना अधिक है। राजनीतिक व प्रशासनिक इच्छा शक्ति के अभाव एवं अदूरदर्शिता के कारण भविष्य में जल संकट और गहरा सकता है।
बढ़ते प्रदूषणजनसंख्या वृद्धि तथा वायुमंडल में तेजी से हो रहे परिवर्तन के कारण प्राकृतिक जल स्रोत तेजी से सूखते जा रहे हैं। वाशिंगटन स्थित वर्ल्ड वाच संस्थान का अनुमान है कि भारत के केवल 42 प्रतिशत लोगों को ही स्वच्छ पेयजल मयस्सर हो पाता है।
हमारे देश में अधिक शिशु मृत्यु दर होने के लिए दूषित पेयजल बहुत हद तक जिम्मेदार है। उद्योगों से उत्पन्न होने वाले कचरे तथा उसमें क्लोरीनअमोनिया, हाइड्रोजन सल्फाइड, अम्लजस्तासीसा, पारा आदि विपैले रसायन जल को विषाक्त बनाते हैं। ये रसायन पानी में रहने वाली मछलियों के माध्यम से मानव शरीर में पहुंचते हैं। इसके अलावा ऐसा पानी के सेवन करने या उसके सम्पर्क में आने से यह स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालता है। श्वास रोगआंखों के रोग, रक्त संचार में गड़बड़ी, लकवा आदि दूषित जल के ही परिणाम हैं। यही नहीं दूषित पानी का खेतों में सिंचाई के रूप में प्रयोग करने से दूषित तत्व अनाज एवं सब्जियों के माध्यम से हमारे शरीर में पहुंचकर हमारे स्वास्थ्य को हानि पहुंचाते हैं।
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