Mother Essay in Hindi |Mother Nibandh
माँ पर निबंध Essay on Mother
मेरी मां बहुत प्यारी हैं। वे रोज सुबह घर में सबसे पहले उठ जाती हैं। भगवान से लेकर घर के सब लोगों का ध्यान मेरी मां ही रखती हैं। वे दादा-दादी का पूरा ध्यान रखती हैं। पापा, मेरी और मेरी छोटी बहन की हर एक छोटी बड़ी बातों की परवाह भी मेरी मां करती हैं। दादी कहती हैं कि मेरी मां घर की लक्ष्मी हैं। मैं भी मां को भगवान के समान मानता हूं और उनकी हर बात मानता हूं। मेरी मां जॉब भी करती हैं। घर और ऑफिस दोनों की जिम्मेदारी वे बहुत ही अच्छे से निभाती हैं। उनके सरल और सुलझे व्यवहार की तारीफ उनके ऑफिस के सारे लोग करते हैं। मेरी मां गरीबों और बीमारों की भी हर संभव मदद करती हैं। मेरी मां मेरी सबसे अच्छी दोस्त हैं। मैं जब कोई गलती करता हूं तब मां मुझे डांटती नहीं हैं। बल्कि प्यार से मुझे समझाती हैं। जब मैं दुखी होता हूं तब मेरी मां ही मेरे मुरझाए चेहरे पर मुस्कुराहट लेकर आती हैं।
उनके प्यार और ममतामयी स्पर्श को पाकर मैं अपने सारे दुख भूल जाता हूं। मेरी मां ममता की देवी समान हैं। वे मुझे और मेरी बहन को हमेशा अच्छी-अच्छी बातें बताती हैं। मेरी मां मेरी आदर्श हैं। वे मुझे सच के रास्ते पर चलने की सीख देती हैं। समय का महत्व बताती हैं। कहते हैं कि मां ईश्वर के द्वारा हमें दिया गया एक वरदान है। जिसकी आचल की छांव में हम अपने आप को सुरक्षित महसूस करते हैं और अपने सारे गम भूल जाते हैं। मैं अपनी मां से बहुत प्यार करता हूं और भगवान को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने मुझे दुनिया की सबसे अच्छी मां दी।
माँ पर निबंध Essay on Mother
माँ के बिना जीवन संभव नहीं है। माँ जननी है। असहनीय शारीरिक कष्ट के उपरान्त वह शिशु को जन्म देती है। व्यक्तिगत स्वार्थों को त्यागकर, अपने कष्टों को भूलकर वह शिशु का पालनपोषण करती है। अपनी सन्तान के सुख के लिए माँ अनेक कष्टों और प्रताड़नाओं को भी सहर्ष स्वीकार कर लेती है। माँ के स्नेह एवं त्याग का पृथ्वी पर दूसरा उदाहरण मिलना सम्भव नहीं है। हमारे शास्त्रों में माँ को देवताओं के समान पूजनीय बताया गया है। इस संसार में माँ की तुलना किसी अन्य से नहीं की जा सकती। परिवार में माँ का महत्त्व सबसे बड़ा है। घर-परिवार को सम्भालने के साथ माँ अपनी सन्तान का पालन-पोषण भी करती है और उसका प्रत्येक दुःखदर्द दूर करने के लिए दिन-रात सजग रहती है। परिवार के अन्य सदस्य अपने-अपने निजी कार्यों में व्यस्त रहते हैं। परन्तु माँ सन्तान के लिए समर्पित रहती है। माँ का सर्वाधिक समय सन्तान की देखभाल में व्यतीत होता है। सन्तान की देखभाल के लिए माँ को रात में बार-बार जागना पड़ता है। परन्तु अधूरी नींद के उपरान्त भी माँ सदैव सन्तान के प्रति चिंतित रहती है।
सन्तान को संस्कार प्रदान करने में माँ का विशेष योगदान होता है। माँ ही सन्तान को चलना-बोलना सिखाती है। आरम्भ में माँ ही सन्तान के अधिक सम्पर्क में रहती है। माँ के मार्गदर्शन में ही सन्तान का विकास होता है। महान संतमहा पुरुषों की जीवनी सुनाकर माँ सन्तान में महान व्यक्ति बनने के संस्कार कूटकूटकर भरती है। वह सन्तान को सामाजिक मर्यादाओं का ज्ञान कराती है और उसे उच्च विचारों का महत्त्व बताती है। सन्तान को चरित्रवान, गुणवान बनाने में सर्वाधिक योगदान माँ का होता है। एक ओर वह सन्तान को लाड़-प्यार से सुरक्षा एवं शक्ति प्रदान करती है, दूसरी ओर डाँट डपटकर उसे पतन के मार्ग पर जाने से बचाती है। किसी भी व्यक्ति का चरित्रनिर्माण उसकी माँ की बुद्धिमत्ता पर निर्भर करता है। एक माँ ही किसी भी व्यक्ति की प्राथमिक शिक्षिका होती है।
प्रत्येक माँ को अपनी सन्तान सर्वाधिक प्रिय होती है। अपनी सन्तान के लिए माँ सारे संसार से लड़ सकती है। परन्तु सन्तान के प्रति माँ का अन्धा मोह प्रायः सन्तान के लिए अहितकर सिद्ध होता है। सन्तान के पालन-पोषण में माँ को लाड़-प्यार के साथ बुद्धिमत्ता की भी आवश्यकता होती है। अत्यधिक लाड़-प्यार में माँ की सन्तान के प्रति लापरवाही सन्तान को पथभ्रष्ट कर सकती है। माँ का अत्यधिक मोह सन्तान को कामचोर और जिद्दी बना सकता है। वास्तव में योग्यता कठिन परिश्रम के उपरान्त ही प्राप्त होती है। एक बुद्धिमान माँ अपनी सन्तान से प्रेम अवश्य करती है, परन्तु उसे योग्य बनाने के लिए उसके प्रति कठोर बनने में कोताही नहीं करती। लाड़-प्यार के नाम पर सन्तान को अधिक ढील देने वाली माँ को बाद में पश्चाताप ही करना पड़ता है। आधुनिक समाज में माँ को दोहरा जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है। नारीस्वतंत्रता के नाम पर अधिकांश महिलाएँ विभिन्न क्षेत्रों में नौकरीव्यवसाय कर रही हैं। उन्हें घर-परिवार की देखभाल के लिए अधिक समय नहीं मिलता।
परन्तु घर-परिवार की देखभाल नारी को ही करनी पड़ती है। सुबह परिवार में सबसे पहले जागकर वह घर के कामकाज करती है। दिन में उसे नौकरीव्यवसाय में खटना पड़ता है और शाम को घर आने पर पुनः परिवार का दायित्व उसके कन्धों पर आ जाता। है। इस दोहरे जीवन में स्पष्टतया नारी अथवा माँ को कठिनाई अवश्य होती है, परन्तु वह प्रत्येक परिस्थिति से मुकाबला करते हुए अपनी शक्ति को प्रमाणित करती है।वास्तव में माँ की आंतरिक शक्ति अतुलनीय है। यद्यपि हमारे पुरुषप्रधान समाज में पुरुषों को अधिक अधिकार प्राप्त हैं, परन्तु माँ के बिना परिवार की कल्पना नहीं की जा सकती। दिन में घर से बाहर कामकाज में खटने के बाद भी घर-परिवार का दायित्व सम्भालने की सामर्य माँ में ही सम्भव है। एक पुरुष कामधन्धे के लिए कठोर परिश्रम कर सकता है, परन्तु घर-परिवार और विशेषतया बच्चों को सम्भालने की योग्यता पुरुष में नहीं होती।
हमारे शस्त्रों में सत्य ही कहा गया है कि माँ देवताओं के समान पूजनीय होती है। वास्तव में माँ परिवार में सर्वाधिक सम्मान की अधिकारी है। माँ का महत्व सबसे बड़ा है।
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