My Family Essay in Hindi |My Family Nibandh
मेरा परिवार पर निबंध Essay on My Family
मेरा परिवार संयुक्त और बड़ा परिवार है। शहर में रहते हुए भी परिवार के सभी सदस्य साथ-साथ रहते हैं। मेरे परिवार में दादा-दादी, माँपिताजी, चाचा-चाची और हम पाँच भाई-बहन हैं। इस तरह कुल मिलाकर मेरे परिवार में ग्यारह सदस्य हैं। परिवार के सभी सदस्य आपस में मैत्रीभाव से रहते हैं। हमारा परिवार एक आदर्श और खुशहाल परिवार है। दादा-दादी परिवार के बुजुर्ग एवं सम्मानित सदस्य हैं। परिवार के अन्य सदस्य उनका बहुत आदर करते हैं। उनकी सलाह मानना सभी अपना कर्तव्य समझते हैं। दादा जी पहले शिक्षक थे, अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। वे हम भाई-बहनों को नियमित रूप से पढ़ाते हैं। दादी जी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला हैं तथा उनका अधिकांश समय पूजापाठ और ईश्वर-भजन में व्यतीत होता है। फिर भी कुछ समय वे परिवार के लिए भी निकालती हैं। वे माँ और चाची को गृहकार्य में यथासंभव सहयोग देती हैं।
माँ और चाची को वे परिवार की बहू नहीं बल्कि अपनी बेटी मानती हैं। मेरे पिताजी पेशे से होम्योपैथिक डॉक्टर हैं। शहर में उनका अपना क्लीनिक है। जहाँ वे नियमित रूप से जाते हैं। उनकी दवा से मरीजों को बहुत लाभ होता है। मेरे चाचा जी बिजली विभाग में इंजीनियर हैं। इस तरह मेरे परिवार को अच्छी मासिक आय हो जाती है तथा परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति सरलता से होती है। मेरी माँ और चाची घर का काम-काज सँभालती हैं। हम पाँचों भाई-बहन दो भिन्न विद्यालयों में अध्ययन कर रहे हैं। हम घर पर साथ-साथ पढ़ते और खेलते हैं। मेरे परिवार में अनुशासन और शिष्टाचार को पर्याप्त महत्त्व दिया जाता है।
छोटे बड़ों का आदर करते हैं और बड़े छोटों को अपना प्यार और स्नेह देते हैं। परिवार के सभी काम प्राय: समय पर होते हैं। खाने, पढ़नेखेलने और सोने का समय निश्चित है। यदि कोई बीमार पड़ जाए तो अन्य लोग उसकी सेवा में लग जाते हैं। यदि कोई मुसीबत आ जाए तो परिवार एकजुट होकर उस मुसीबत का सामना करता है।
मेरा परिवार पड़ोसियों के साथ मिलजुल कर रहता है। हम लोग पड़ोसियों के दु:ख-दर्द में हमेशा सहयोगी बनते हैं। पिताजी पड़ोसियों का मुफ्त इलाज करते हैं। दादा जी पड़ोस के बच्चों को एकत्रित कर उन्हें शिक्षा देते हैं। सामाजिक कार्यों में मेरा परिवार बढ़-चढ़कर भागीदारी करता है। इन गुणों के कारण पड़ोस में मेरे परिवार को उचित आदर प्राप्त होता है। पड़ोसी अपने यहाँ हमारी एकजुटता की मिसाल दिया करते हैं जो हमारे लिए गौरव की बात है। हमारे परिवार में अतिथियों का यथोचित सम्मान किया जाता है। बड़ा परिवार होने के कारण मित्र एवं अतिथि अक्सर आते रहते हैं। उन्हें अतिथि कक्ष में सम्मानपूर्वक बिठाया जाता है।
उनकी सुखसुविधा का भी पूरा ध्यान रखा जाता है। हम लोग’अतिथि देवो भव’ की प्राचीन भारतीय अवधारणा को पर्याप्त महत्व देते हैं। मेरे परिवार में आपसी झगड़े नहीं होते। पड़ोसी परिवार आपस में लड़ता है तो हमें हैरानी होती है। मेरे परिवार में यदि कभी आपसी मतभेद होता भी है तो उसे शांतिपूर्वक सुलझा लिया जाता है। बच्चे किसी बात पर आपस में झगड़ते हैं तो बड़े उनके मतभेद दूर कर देते हैं। इस तरह आपसी सामंजस्य तथा प्यार से छोटी-छोटी बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं।
इस तरह मेरा परिवार एक खुशहाल परिवार है। इस खुशहाली का रहस्य अनुशासन पारिवारिक स्नेह और मर्यादा का पालन है। एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति की भावना परिवार को एक ठोस नींव पर खड़ा किए हुए है। ऐसे परिवार में ही सुखशांति का निवास संभव है जहाँ एकता की भावना हो। एकता के बल पर मेरे परिवार को कुदृष्टि से देखने का साहस कोई भी नहीं कर सकता।
मेरा परिवार पर निबंध Essay on My Family
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह सदैव परिवार, कुटुम्ब और समाज में रहता है। हमारे ग्रंथों में भी कहा है-‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात् संपूर्ण संसार एक कुटुम्ब है, एक परिवार है। प्रत्येक व्यक्ति का एक परिवार होता है। परिवार में माता-पितापुत्रपुत्री, बहन-भाई, दादा-दादी, चाचा-चाची, ताया-ताई आदि अनेक सदस्य होते हैं। कई परिवार तो ऐसे होते हैं, जिनमें सौ या सौ से अधिक सदस्य होते हैं। कई परिवार दो, चार या आठ सदस्यों के भी होते हैं। ये छोटे परिवारों की श्रेणी में आते हैं। सरकार ने तो छोटे परिवार का नारा दिया है“छोटा परिवारसुखी परिवार।” यह नारा सरकार ने जनसंख्या को नियंत्रित करने के ध्येय से दिया है। आज भारत की जनसंख्या सौ करोड़ से अधिक है। इसलिए छोटे परिवार का नारा उचित है।
मेरा भी एक छोटा-सा परिवार है। मेरे परिवार में माता-पिता, मेरी बड़ी बहन और दादा-दादी हैं। मेरे दादा-दादी मुझे बहुत प्यार करते हैं। दादाजी मुझे सदैव टॉफी, लड्डू, मूंगफली और फल आदि देते रहते हैं। मेरी बड़ी बहन भी मुझे बहुत स्नेह करती है। वह हमेशा मेरी पढ़ाई पर ध्यान देती है। वह मेरे होमवर्क, परीक्षाएँकिताबकापियाँ, पैन-पेंसिल आदि का सदैव ख्याल रखती हैं। वह प्रतिदिन मुझे सुबह चार बजे उठा देती है। वह कहती है-“सुबह का याद हुआ पाठ हमेशा याद रहता है।” वह मुझे गणितविज्ञान और अंग्रेज़ी में मेरी हमेशा मदद करती है। मेरी बड़ी बहन के कारण ही मैं हमेशा स्कूल में अव्वल आता हूँ। मेरी बड़ी बहन बी.एससी में पढ़ रही है। गणित और विज्ञान उसके प्रिय विषय हैं। मेरी मम्मी भी मुझे बहुत प्यार करती है। वह हमेशा मेरे खानेपीने का ख्याल रखती है। स्कूल जाते समय वह मुझे सदैव दूध के साथ आल का पराठा देती है और अपने हाथों से मेरे बस्ते में लंच रखती है। इसी प्रकार मेरे पिताजी भी मेरा बहुत ध्यान रखते हैं। वह मुझे प्रतिदिन स्कूल छोड़कर आते हैं। मेरे लिए नएनए कपड़े लाते हैं। खेलने के लिए बैट और बॉल भी लाते हैं। वह हर रविवार को मुझे पार्क क्रिकेट खिलाने ले जाते हैं। वहाँ मुझे खूब क्रिकेट खिलाते हैं। वह मुझे मेला और चिड़ियाघर दिखाने भी ले जाते हैं। मेले में वह मुझे झूला ज़रूर झुलाते हैं और खिलौने तथा गुब्बारे भी दिलाते हैं।
इसके अलावा दादाजी भी मुझे बहुत प्यार करते हैं। वह प्रतिदिन मुझे स्कूल से घर लेने आते हैं और रास्ते में मुझे कोई न कोई खाने की चीज़ अवश्य दिलाते हैं। घर में मैं दादाजी के साथ लूडो और शतरंज खेलता हैं। जब मैं बीमार पड़ जाता हूं, तो घर में सभी सदस्य बहुत परेशान हो जाते हैंइस प्रकार मेरा परिवार बहुत ही अच्छा परिवार है। मैं अपने परिवार को बहुत प्यार करता हूं। मेरा परिवार चाहता है कि मैं बहुत बड़ा आदमी बटैं। मेरा परिवार दुनिया का सबसे प्यारा परिवार है।
मेरा परिवार पर निबंध Essay on My Family
एक सुखी परिवार- आपके विचार में वे कौन सी बातें हैं 13 जो एक सुखी परिवार के निर्माण में सहायक होती हैं। वर्तमान समय में हम ऐसे दौर से गुजर रहे हैं जिसमें एक सुसंगठित और सुखी परिवार की अवधारणा किसी मिथ की तरह लगती हैं। संबंधों में बिखराव, टूटन, टन, अ . गाव, आपसी कलह आदि अनेक परिवारों में दिखाई देता है जिससे घर‘घर’ नही रह जाता। एक चार दिवारी और एक छत के नीचे कई पारिवारिक ईकाइयां दिखाई देती हैं। परस्पर वैमनस्यता और कलह मानसिक पीड़ा के अतिरिक्त कुछ भी प्रदान नही करती।
ऐसी स्थिति में परिवार महज समस्याओं की गठरी दिखाई देती है और जीवन में दुःख के सिवा कुछ नजर नहीं आता। कुछ परिवार ऐसे भी हैं जिनके सदस्यों में सौहार्द, प्रेमविश्वास और आपसी तालमेल इतना अधिक है कि किसी को किसी से शिकायत नही होती।
सभी लोग मिलजुल कर रहते हुए आमोदप्रमोद मनाते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें परिवार ही नही सारा संसार खुशियों से भरा दिखाई देता हैं। कुछ लोग संयुक्त परिवार को दोषपूर्ण मानते हैं। अक्सर ही रास्तों पर लिखा दिखाई देता है-‘छोटा परिवार सुखी परिवार ” क्या समस्याएं केवल संयुक्त परिवार में ही होती हैं? मैंने ऐसे कई परिवार देखे हैं जिसमें केवल तीन सदस्य होते हैं-‘पति, पत्नी और बच्चा। किन्तु आये दिन पति-पत्नी में वैचारिक सामंजस्य न होने के कारण परिवार में तनाव बना रहता हैं’ किसी को पति छोड़कर चला जाता है, किसी की पत्नी भाग जाती है। ऐसी स्थिति में सोचने को बाध्य हो जाता हूँ कि वास्तव में परिवार के सुख का आधार क्या हैं?
एक परिवार की आवश्यकताओं पर विचार करने के पहले यह आवश्यक है कि हम जानें कि दु:ख और सुख का आधार क्या है? मुझे लगता है कि हमारे दु:खों का कारण हमारी अपरिमित आकांक्षाएं और हमारी स्वार्थलिप्सा है। जब हम अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं के अतिरिक्त अपनी स्वार्थलिप्सा में कुछ नहीं देखते और उसे दूसरों पर थोपने की कोशिश करते हैं तो यह स्थिति टकराहट पैदा करती है और जीवन को तनाव पूर्ण बना देती है। इतना ही नही जब हमारी इच्छाएं पूरी नही होती तब भी हम कभी ईष्र्यावश, कभी क्रोधवश तो कभी अहंवश तनाव मोल ले लेते हैं। वास्तव में यह हमारी अज्ञानता का प्रतीक है। परिवार चाहे संयुक्त हो या एकल परिवार को सुखी रखने के लिए आवश्यक है कि परिवार का हर सदस्य अपनी जिम्मेदारियों का पालन करे। सभी एक दूसरे की समस्याओं को समझने का प्रयत्न करे। अपने पड़ोसियों की जीवन शैली पर नजर न रखकर अपनी स्थिति के अनुकूल अपनी जीवन शैली निर्धारित करे।
एक कहावत है-तेते पांव पसारिए जेती लंबी सौर ।। यदि हम अपनी औकांत से अधिक आकांक्षा पालेंगे तो या तो वह पूरी नही होगी या उसे पूरा करने के प्रयत्न में दूसरी आवश्यक आवश्यकताओं को तिलांजलि देनी पड़ेगी। दोनों ही स्थितियों में दुःख उठाना पड़ता हैं । यदि हम परिवार में सबसे सलाह मशविरा करें। परिवार की आवश्यकताओं को सीमित और संतुलित बनाने का प्रयास करेंपरिवार के सभी सदस्यों को समान रूप से तरजीह दें । किसी की अनावश्यक उपेक्षा न करें और किसी से अनावश्यक अपेक्षा न करें, पारिवारिक रूचि या आवश्यकता के समकक्ष व्यक्तिगत रूचि या आवश्यकता को न रखें तो इससे परिवार की सुख शांति बनी रहती हैं ।
प्रेम और सम्मान जीवन का आधार है। दीवारों से घर नही बनताप्रेम से बनता हैं। अतः प्रेम का बंधन जितना ही गहरा और मजबूत होगा रिश्ते उतने ही पवित्र होंगे। परिवार के सारे सदस्य यदि प्रेम के बंधन में बंधे हों तो परिवार में सुख शांति हमेशा बनी रहेगी।
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